सदर अस्पताल में नवजात बच्चे की अदला-बदली मामले में स्वास्थ्य विभाग मौन,डीडीसी से की शिकायत

पीड़ित परिजन के द्वारा कई बार इस मामले को लेकर स्वास्थ्य विभाग को जांच के लिए आवेदन दी गई।लेकिन इनकी बातों को अनदेखी कर दी गई।

सदर अस्पताल में नवजात बच्चे की अदला-बदली मामले में स्वास्थ्य विभाग मौन,डीडीसी से की शिकायत
विश्वनाथ प्रताप यादव की रिपोर्ट//अरवल--जिले के सबसे बड़े अस्पताल में नवजात की अदला बदली का एक अजीवो गरीब वाकया तब सामने आया।जिसमे पीड़ित परिजन स्वास्थ्य विभाग से न्याय की गुहार लगाकर थक हार गये इसके उपरांत डीडीसी के पास लिखित शिकायत की।दरअसल पुरा मामला 5 वर्ष पूर्व 30 नवंबर 2017 का है। जब अरवल सदर थाना क्षेत्र अंतर्गत बैदराबाद वार्ड नंबर 20 कागजी मोहल्ला निवासी दिलीप साव अपनी पत्नी उर्मिला देवी को प्रसव कराने को लेकर अरवल सदर अस्पताल में भर्ती कराता है।पीड़ित परिजनों ने बताया कि प्रसव के बाद वहां के नर्स और आशा के द्वारा झांसे में रखकर नवजात बच्चे को फेर बदल कर दिया गया। बेटे के जन्म हुआ था लेकिन स्वास्थ्य कर्मियों ने फेर बदल कर बेटी लाकर उर्मिला देवी के बगल में रख दिया।
स्वास्थ्य कर्मियों के इस तरह की हरकत की खबर कानो-कान दिलीप साव जैसे ही लगा तो उन्होंने सदर अस्पताल पहुंच हो हंगामा करना शुरू कर दिया। जिसके बाद कर्मियों ने उन्हें समझा-बुझाकर घर भेज दिया। लेकिन उन्होंने लगातार सिस्टर और आशा कार्यकर्ताओं पर बच्चे का फेरबदल करने का आरोप लगाते हुए सच्चाई की जांच करने को लेकर स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों के कार्यालय का चक्कर लगाता रहा। तब से लेकर अब तक जब बच्ची का उम्र लगभग 5 वर्ष अधिक हो गया। लेकिन पीड़ित परिजनों ने न्याय संगत कार्यवाही नहीं होने के उपरांत अरवल उप विकास आयुक्त रविंद्र कुमार से इसकी लिखित शिकायत 23 मार्च 2023 को किया। जैसे ही शिकायत अधिकारी को प्राप्त हुई उन्होंने तुरंत सिविल सर्जन डॉ राय कमलेश्वर नाथ सहाय को जांच का आदेश दे दिये।
इस संबंध में मिली जानकारी के अनुसार पीड़ित परिजन के द्वारा कई बार इस मामले को लेकर स्वास्थ्य विभाग को जांच के लिए आवेदन दी गई।लेकिन इनकी बातों को अनदेखी कर दी गई। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि जिले के सबसे बड़े सदर अस्पताल में इस प्रकार की कारनामा की शिकायत पुरे जिले में चर्चा का विषय बना हुआ है कि आखिर स्वास्थ्य विभाग के द्वारा इतने बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं और हर जगह मुस्तैदी के साथ स्वास्थ्य कर्मियों को तैनात किया जाता है कि नवजात बच्चों और उनकी मां को बेहतर से बेहतर सुविधा दी जाए ताकि किसी प्रकार से कोई भी समस्या उत्पन्न ना हो।अब देखना होगा कि आखिर पीड़िता को कब तक स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन के पदाधिकारियों के द्वारा जांच उपरांत न्याय दी जाती है। लेकिन एक बात स्पष्ट जरूर है कि पीड़ित परिवारों को अब स्वास्थ्य विभाग कही न कही पागल घोषित करने में जुटी हुई है।

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