शीत घर नही होने के कारण पोस्टमार्टम हेतु लाये गए लावारिस लाश की हो रही है दुर्गति

आसपास फैली रहती है बदबू,उसका दाह संस्कार के लिए ले जाने के जब नौबत आती है तो लोग वहां तक पहुंचने से कतराते हैं।

शीत घर नही होने के कारण पोस्टमार्टम हेतु लाये गए लावारिस लाश की हो रही है दुर्गति

प्रिया सिंह की रिपोर्ट//बाढ़--अनुमंडल अस्पताल में प्रति महीना दो से तीन लावारिस लाश पहुंचता है जिसका पोस्टमार्टम कराए जाने के बाद पुलिस के लिए यह बाध्यता है कि उसके पहचान के लिए उसे 3 दिनों तक पोस्टमार्टम कक्ष में सुरक्षित रखा जाए। लेकिन 42 से 44 डिग्री सेल्सियस वाला तापमान में लाश की दुर्गति दूसरे दिन ही हो जाती है।पोस्टमार्टम हॉल के आसपास बदबू इस तरह आने लगता है कि उसका दाह संस्कार के लिए ले जाने के जब नौबत आती है तो लोग वहां तक पहुंचने से कतराते हैं।अनुमंडलीय अस्पताल में एक तो पोस्टमार्टम करने वाले चतुर्थवर्गीय सरकारी कर्मी की कमी है वहीं दूसरी तरफ ना तो फ्रीज और शीत घर की व्यवस्था है।जिसके चलते मानवता को तार-तार कर देने वाला नजारा हर बार देखने को मिलता है।अनुमंडल प्रशासन इस गंभीर समस्या के प्रति जागरूक नहीं है कई बार स्थानीय बुद्धिजीवियों ने मानवता से जुड़ी इस गंभीर समस्या के बारे में अवगत करा चुका है। इसके बावजूद भी आज तक शीतल घर की व्यवस्था नहीं हो पाई है। जानकारों की माने तो गंगा नदी के किनारे पोस्ट ऑफिस घाट के बगल में बाढ़ अंग्रेजों के जमाने से बने पोस्टमार्टम हॉल के लावारिस लाश को पॉलिथीन में बंद करते हुए उसे हल्की मिट्टी से दबा दिया जाता है।पहचान होने या फिर डिस्पोजल करने के लिए बाद में उसे मिट्टी से बाहर निकालकर दाह संस्कार किया जाता है।मामले को लेकर ना तो अस्पताल प्रबंधन इस गंभीर समस्या के प्रति संवेदनशील है और ना ही अनुमंडल प्रशासन।


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