संपादक-पत्रकार  शैलेंद्र दीक्षित  जिंदादिल और हम दर्द इंसान थे-अनमोल कुमार

राष्ट्रीय ग्रामीण पत्रकार संघ ने प्रकट की शोक संवेदना

संपादक-पत्रकार  शैलेंद्र दीक्षित  जिंदादिल और हम दर्द इंसान थे-अनमोल कुमार
बिहार/पटना--दैनिक जागरण  के संपादक पत्रकार शैलेंद्र दीक्षित के असामयिक निधन पर पत्रकारिता जगत में शोक व्याप्त हो गया l संपादक जी और भैया जी के रूप में पुकारे जाने वाले शैलेंद्र दीक्षित का निधन हृदय गति रुक जाने के कारण हो गया  l उनके निधन की खबर सुनते हैं समस्त पत्रकार जगत में दुख शोक का माहौल व्याप्त हो गया राष्ट्रीय ग्रामीण पत्रकार संघ राष्ट्रीय संस्थापक अनिल कुमार गुप्ता राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेश वर्मा प्रदेश अध्यक्ष अनमोल कुमार प्रदेश महासचिव सुधांशु कुमार  प्रदेश सचिव प्रभात कुमार प्रदेश संगठन सचिव अमित कुमार सहित सभी पदाधिकारियों ने गहरी शोक संवेदना प्रकट करते हुए ईश्वर से उनके दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की और इस दुख की घड़ी में उनके परिजनों को संवेदना सहन करने की शक्ति के लिए भी ईश्वर से प्रार्थना की l 
     शैलेंद्र दीक्षित जी को कोई नाम से नहीं पुकारता था। वे संपादक जी और भैया के रूप में जाने जाते थे। उनका
जाना एक पत्रकार भर का जाना नहीं है।  वे संपादक पैदा करने वाले एक संस्थान थे। आज उनके गढ़े दर्जनों संपादक विभिन्न अखबारों में कार्यरत हैं। वे संपादकों की खत्म होती पीढ़ी के एक मजबूत स्तम्भ थे। वैसे तो उनसे परिचय करीब 1990 से था लेकिन उनके सानिध्य में 2007 से काम करने का सौभाग्य हासिल हुआ। वे एक संपादक-पत्रकार ही नहीं जिंदादिल और अपने सहयोगियों के दुख-सुख में सदा शामिल होने वाले इंसान थे। मुझे इस बात का दुख है कि इधर कुछ दिनों से उनके कई फोन मेरे पास आए साथ काम करने के लिए लेकिन अस्वस्थता के कारण मैं टालता रहा। 
    वे कानपुर के रहने वाले थे। 2000 में जब पटना से जागरण का प्रकाशन शुरू हुआ तो संपादक के रूप में आये। फिर इस कदर रमे कि किसी किसी बिहारी से कम नहीं थे। वे जो काम करते तो डूबकर करते। बिहार में छठ पूजा और उसमें लोगों की आस्था देख खुद इतना डूब गए कि स्वयं छठ करने लगे। यहां तक कि बिहार से कानपुर आ जाने के बाद भी। 
    कम संसाधन में बेहतर अखबार निकाल लेने और खबरों को सूंघने की उनमें गजब की क्षमता थी। अमूमन अपनी टीम के हर सदस्य की नब्ज पढ़ते और जिसमें जो क्षमता होती अखबार के हित में उसका बेहतर इस्तेमाल करते। शैलेंद्र जी में टीम लीडर की गजब की क्षमता थी। अखबार में काम करने वालों को एक परिवार के रूप में देखे, किसी की शादी हो या निधन अभिभावक की भूमिका में दिखते। बिहार, झारखंड से लेकर बंगाल तक दैनिक जागरण का झंडा बुलंद किया। वे हमेशा नई पीढ़ी को अवसर देते रास्ता निकालते रहते थे। कानपुर में आज अखबार से दैनिक जागरण होते हुए डिजिटल मीडिया बिफोर प्रिंट तक के सफर में नए और पुराने का संयोग कर उन्होंने सफलता की एक ऐसी बड़ी इबारत लिखी, जो सुनहरे अक्षरों में लिखी जाएगी। उनका जाना पत्रकारिता के एक अभिभावक का चला जाना है। संपादक जी के निकटवर्ती पत्रकार मित्र कुमार हर्ष वर्धन द्वारा अभिव्यक्त उनकी जीवनी का चित्रण अनुकरणीय है।

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